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आरएसएस प्रार्थना के प्रेरणादायक गीत: राष्ट्रभक्ति और सेवा की ज्योति

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में भारत को एक मजबूत और एकजुट राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से की गई थी। आरएसएस प्रार्थना इसी उद्देश्य को प्रतिबिंबित करती है, जो राष्ट्रभक्ति, सेवा और बलिदान की भावना को प्रेरित करती है।

आरएसएस प्रार्थना का महत्व

आरएसएस प्रार्थना संघ के स्वयंसेवकों के लिए एक दैनिक प्रथा है। यह उन्हें उनके कर्तव्यों की याद दिलाती है और राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रबल करती है। प्रार्थना में निहित मूल्य आत्मनिर्भरता, अनुशासन और समाज सेवा पर जोर देते हैं।

प्रार्थना के शब्द

आरएसएस प्रार्थना मूल रूप से संस्कृत में रचित है और इसका हिंदी अनुवाद व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इस प्रार्थना के शब्द भावपूर्ण और प्रेरणादायक हैं, जो देशभक्ति की भावना पैदा करते हैं और स्वयंसेवकों को समाज की सेवा के लिए प्रेरित करते हैं।

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राष्ट्रभक्ति की भावना

"न धन न जन न शस्त्रांनि, न राज्यं न च सुहृदः।" (न तो धन, न अनुयायी, न हथियार, न राज्य और न ही मित्र।)

आरएसएस प्रार्थना राष्ट्रभक्ति की एक शक्तिशाली भावना व्यक्त करती है। यह स्वयंसेवकों को याद दिलाती है कि राष्ट्र की ताकत धन या सैन्य शक्ति में नहीं है, बल्कि अपने लोगों की एकता और बलिदान की भावना में है।

सेवा का भाव

"शरण्यं त्रयमावाहेद्, भारताष्टभुवनं पवित्रं।" (हम तीनों की शरण लेते हैं: भारत, आठ दिशाएं और पवित्र भूमि।)

प्रार्थना में सेवा के भाव को भी प्रमुखता से दर्शाया गया है। स्वयंसेवकों को राष्ट्र की सेवा करने और समाज के कमजोर वर्गों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

आरएसएस प्रार्थना के प्रेरणादायक गीत: राष्ट्रभक्ति और सेवा की ज्योति

बलिदान की भावना

"संबृद्धं करुणार्द्रं च, हितकार्योपदेशकृत्।" (समृद्ध, दयालु और हितकारी कार्यों के लिए प्रेरक।)

आरएसएस प्रार्थना बलिदान की भावना को भी उजागर करती है। स्वयंसेवकों से राष्ट्र की भलाई के लिए अपने स्वयं के हितों को त्यागने का आह्वान किया जाता है।

प्रेरणादायक कहानियाँ

आरएसएस प्रार्थना के शब्दों ने अनगिनत लोगों के जीवन को प्रेरित किया है। स्वयंसेवकों की कई कहानियाँ हैं जिन्होंने राष्ट्र की सेवा में बलिदान और साहस का प्रदर्शन किया है।

कहानी 1: उत्तराखंड में एक भूकंप के दौरान, आरएसएस स्वयंसेवकों ने राहत कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने फंसे हुए लोगों को बचाया, भोजन और आश्रय प्रदान किया और समुदाय को पुनर्निर्माण करने में मदद की।

कहानी 2: कोविड-19 महामारी के दौरान, आरएसएस स्वयंसेवकों ने अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के रूप में काम किया। उन्होंने भोजन वितरित किया, मास्क और सैनिटाइज़र प्रदान किए और लोगों को आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त करने में मदद की।

हास्य को शामिल करना

आरएसएस प्रार्थना के गंभीर स्वर के बावजूद, यह हास्य से रहित नहीं है। इसमें एक पंक्ति है जो कहती है: "गृहात्प्यव्रजेद्दूरं, श्रेयोवाप्तुं चिरन्तनं।" (घर से भी दूर चले जाते हैं, शाश्वत अच्छाई प्राप्त करने के लिए।)

यह पंक्ति उस बलिदान को हल्का करती है जो स्वयंसेवक राष्ट्र की सेवा में करते हैं। यह दर्शाता है कि सेवा की खोज में, उन्हें अपने परिवार और आराम क्षेत्र को पीछे छोड़ना पड़ सकता है।

प्रार्थना का प्रभाव

आरएसएस प्रार्थना का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह राष्ट्रीय एकता, समाज सेवा और व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देने में सहायक रही है। प्रार्थना के शब्दों ने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया है और देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को मजबूत किया है।

कहानी 1:

निष्कर्ष

आरएसएस प्रार्थना राष्ट्रभक्ति, सेवा और बलिदान के मूल्यों का एक शक्तिशाली भजन है। इसके शब्द स्वयंसेवकों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाते हैं और राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रबल करते हैं। प्रार्थना का राष्ट्रीय एकता, समाज सेवा और व्यक्तिगत विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा है, और यह आज भी भारतीय समाज में एक प्रेरक शक्ति बनी हुई है।

आरएसएस प्रार्थना के गीत (हिंदी में)

हे भगवान!

न धन न जन न शस्त्रांनि, न राज्यं न च सुहृदः।
बिभेमि तदपि न भियामि, को वा अरिः को वा गतिः।।

शरण्यं त्रयमावाहेद्, भारताष्टभुवनं पवित्रं।
राष्ट्रं रक्षतु भगवान्, तत्समर्पणं मम।।

अस्माकं सुमतिं यच्छतु, राष्ट्रदुर्गो बलवान् भवतु।
संघशक्तिं च गोपालयतु, सर्वत्र विजयी भवतु।।

संबृद्धं करुणार्द्रं च, हितकार्योपदेशकृत्।
करुणाविश्वरूपायै तस्मै नित्यं नमो नमः।।

गृहात्प्यव्रजेद्दूरं, श्रेयोवाप्तुं चिरन्तनं।
समाजाय सुखं देही, समाजेन सुखं लभे।।

विद्यया विमुक्तये यस्य, चेमं मार्गं अनुसरति।
देशकालद्रव्यैर्नियतं, रक्षां कुरु तमव्यय।।

अनेककोटिशतसंख्या, दीनानाथस्य संपदि।
संघोऽस्ति स्वयमेवेंद्रः, स्वयं सेवकगणः स्वयं।।

सांप्रतं प्रणमामि देवं, भक्त्या हृद्यान्ममाखिलात्।
सदा कल्पात्कल्येऽपि, रक्षां कुरु सुरेश्वर।।

Time:2024-08-15 23:02:11 UTC

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